ग़ज़ल
रहनुमा गर जो कोई मिल जाए।
पास मेरे मेरी मंज़िल आए।।
वो जो आए तो मेरी राहों का।
ये काँटा फूल बन के खिल जाए।।
मेरी कश्ती डुबो दे ये तूफ़ां।
इसके पहले मेरा साहिल आए।।
जिनकी ख़ातिर लड़े ज़माने से।
वो न मेरे ही मुक़ाबिल आए।।
रह गए हौंसले धरे के धरे।
उनके क़दमों में हार दिल आए।।
सूने सेहरा में आज छोड़ गया।
छोड़ जिसके लिए महफ़िल आए।।
ए “उषा” ज़ख्म ये भरते क्यूँ कर।
लेके मरहम तेरे क़ातिल आए।।
उषा पाण्डेय