आशियाँ ये सनम देखते हैं।
फूटे मेरे करम देखते हैं।।
काँटों में र हके पायी मुहब्बत।
ये गुलाबों में हम देखते हैं।।
ऐसे मुझसे बिछुड़कर वो जैसे।
मेरी आँखों को नम देखते हैं।।
ज़िन्दगी में बदलते है मौसम।
हम खुदाया करम देखते हैं।।
आँख काजल से चाहे न खोना।
उसका ये वहम हम देखते हैं।।
यों घड़ी चलती रहती बराबर।
ख़ाब हम तेरे कम देखते हैं।।
शान शौकत ज़माने में आकिब’।
मौत से ख़तम हम देखते हैं।।
●आकिब जावेद●