तेरा अक्स भी बारिश की बूँदों से धोकर देखते हैं
हम भी खुद को चाहतों में भिंगो कर देखते हैं
ये रंगत, ये चाहत, ये नज़ाकत और ये क़यामत
मैकशी में ही कुछ घड़ी बसर करके देखते हैं
बिंदी,लाली,चूड़ी,कंगन,पाजेब और तेरी कमीज
पहना कर अब ज़रा अपनी ग़ज़ल को देखते हैं
मौसम का शबाब और उनकी निगाहों का शराब
हम भी अपनी तारीफों में असर करके देखते हैं
एक मेरा मासूम दिल और उसकी कुछ हसरतें
कोई बहाने ही सही उनकी नज़र करके देखते हैं
सलिल सरोज