हाल-ए-दिल उनको सुनाना न आया
मोहब्बत निगाहों से बताना न आया
जब खुद को देखा मेरी निगाहों से
फिर खुद को ही छिपाना न आया
हम तेरे तार्रुफ़ से हुए कभी गाफिल
ऐसा कभी कोई भी ज़माना न आया
ये खुली ज़ुल्फ़ें और झुकी हुई नज़रें
क्यों फिर याद कोई फ़साना न आया
तेरे मरहमी लबों के सिवा हमें और
जहन में कोई ठौर-ठिकाना न आया
सलिल सरोज