ग़ज़ल
चुनाव के लिए प्यास बाकी है अभी।
बेसहारों को एक आश बाकी है अभी।
हालात ए जिंदगी कैसे बयां हो यहाँ,
चंद लम्हों सा विश्वास बाकी है अभी।
जुलूस ए कामयाबी दौड़ रही है अब,
इम्तहान होना पास बाकी है अभी।
काँटों की चुभन कैसे दर्द देती है,
भंवरों इसका एहसास बाकी है अभी।
खून पसीने की कमाई को हक कहाँ,
बेघरों का निवास बाकी है अभी।
सफेद चोले ठगने आए हैं “मुसाफिर”,
सतर्क बन साँस बाकी है अभी।।
रोहताश वर्मा”मुसाफिर”