ग़ज़ल
इंसानियत मिटा कर तुम क्या बचा रहे हो।
मजहब के नाम पर क्यों गोली चला रहे हो।।
बच्चें के हाथ में तुम हथियार को थमा कर।
मासूम को भला क्यों बागी बना रहे हो।।
तुम को चुनाव में अब वोटो की है ज़रूरत।
तुम तो सियासती अब रोटी पका रहे हो।।
ये मुल्क है अमन का इस पर ना आंच आये।
मालूम है हमे भी तुम क्यों लड़ा रहे हो।।
हिन्दू मरा या मुस्लिम इंसान तो सभी है।
इल्ज़ाम किस के सर पर अब तुम लगा रहे हो।।
गद्दार हो गये क्या इतना समझ नहीं है।
इन्सानियत से हट कर नारा लगा रहे हो।।
अब ख़त्म भी करो तुम मजहब की ये लड़ाई।
तुम शर्म से हमारा क्यों सर झुका रहे हो।।
अंशु कुमारी