जोश में आब-ओ-ताब पैदा कर
दहर में इन्क़िलाब पैदा कर
चाहता है अगर फ़िज़ा महके
डाली डाली गुलाब पैदा कर
भाई चारा रहे सदा कायम
ऐसा कोई हिसाब पैदा कर
अब मुहब्बत की गूँध कर मिट्टी
नफ़रतों का जवाब पैदा कर
इल्म की रोशनी मिले जिसमें
वह तरक्की के बाब पैदा कर
काम ग़फ़लत से अब नहीं चलना
होश के आफ़ताब पैदा कर
दर्द महसूस ग़ैर का हो तुझे
दिल में वह इज़तिराब पैदा कर
आसमां की बुलंदीयां छू ले
हौसलों में उक़ाब पैदा कर
साद बारिश की बूँद के जैसा
दिल के अंदर हुबाब पैदा कर
अरशद साद रूदौलवी