है जवानी में लाख उलझन ही
होता मासूम सिर्फ बचपन ही
आते जाते कई हैं मौसम पर
भाये मन को हमारे सावन ही
जीस्त से दुश्मनी हुई जब से
तब से देखा नहीं है दरपन ही
लाख ससुराल मे मिले खुश्याँ
आये बाबुल का याद आंगन ही
दूर के दोस्तों से बेहतर हैं
अपनी बस्ती के साद दुश्मन ही
अरशद साद रूदौलवी