कोई नही है अपना , किसी से गिला ना कर
इस शहर में दिल लेकर, किसी से मिला ना कर
गम को खुशी बनाकर , हवा में उडादे तू
अपने गमों का आम यूं , सिलसिला ना कर
दिल से जो काम लोगे , कयामत ही आयेगी
गुजरी कहानी लेकर , किसी से मिला ना कर
लोगों ने हुनर सीख लिया, हसाकर के रूलाना
यू वक्त बेवक्त , किसी से खिला ना कर
दीवार.ओ.दर पर छोड दे, लिखना तू मेरा नाम
“कागज .ए.दिल ” के अलावा, किसी पै लिखा ना कर
आँखों के समुन्द्र को , छलकनें नही देना
पानी सा हर एक जाम में, “सागर” मिला ना कर !!
************
मूल शायर …./
डाँ. नरेश कुमार “सागर”