जहां सच का कोई क़ाइल नहीं है
किसी काबिल तो वो महफ़िल नहीं है
अगर इन्सानियत शामिल नहीं है
कोई भी शख़्स हो कामिल नहीं है
मुहब्बत वो समझ पाएगा कैसे
मुहब्बत ही जिसे हासिल नही है
अभी रक़्ते सफ़र जारी है मेरा
क़रीब आई अभी मंज़िल नहीं है
सरे मक़तल में दूं इल्ज़ाम किस को
कोई भी ग़ैर तो क़ातिल नहीं है
बहुत तबदीलया इंसां में आयीं
जहां दिल था वहां अब दिल नहीं है
सरे मह्शर भी जाना है अभी तो
“ये दुनिया आख़िरी मंज़िल नहीं है”
अगर हो हौसला दिल में हमारे
कोई भी काम फिर मुश्किल नहीं है
अभी भी साद मुझको याद है तू
हुआ चेहरा तिरा धूमिल नहीं
अरशद साद रूदौलवी