खोल दिए आज सारे राज़ मैंने दिल के
नींद से लड़ के और ख़्वाबों में चल के
आज जब अपनी बेटी हुई क़त्ल तब
गुनहगार रोया अपने गुनाहों से मिल के
ज़माने ने बना दी है कुछ रीत ही ऐसी
बच्चियाँ घरों में रहती है ज़ुबानें सिल के
दौलत जब से गया रिश्तों के सिरहाने
वो फिर कभी हँस नहीं पाया है खिल के
सलिल सरोज