दर्द-ओ-ग़म अपना दिखाने के लिए रोता है
क्या तू पागल है ज़माने के लिए रोता है
कोई रोता है उसे याद नहीं करता तू
और कोई तुझको भुलाने के लिए रोता है
जिसको शौहरत की बुलंदी है जहां में प्यारी
वो ज़माने को झुकाने के लिए रोता है
तपते सहरा को मुसलसल ही कोई दीवाना
सिर्फ गुलज़ार बनाने के लिए रोता है
काग़ज़ी फूल बना लाया है नन्हा बच्चा
उस में ख़ुशबू वो बसाने के लिए रोता है
कोई वीरान किए देता है बस्ती सारी
कोई इक घर ही बनाने के लिए रोता है
तेरा मेरा ही फ़क़त गम हो तो मातम भी करे
दर्द तो साद ज़माने के लिए रोता है
अरशद साद रूदौलवी