तू जब गुनाह की लज़्ज़त में डूब जाएगा
कसम ख़ुदा की हलाकत में डूब जाएगा
नज़र जो आने लगे झूट आईने में फिर
हर एक आदमी हैरत में डूब जाएगा
अगर उतार ली दस्तार आपने उस की
ग़रीब शख़्स है ग़ैरत में डूब जाएगा
झुकेगा सर तिरा सज्दे में बहते पानी पर
तू जब ख़ुदा की इबादत में डूब जाएगा
ख़ुदा को देगा सर-ए-हश्र क्या जवाब आख़िर
अगर जहां की मुहब्बत में डूब जाएगा
बनेगा कैसे तो हाकिम भला ज़माने का
जो इस तरह से तू ग़फ़लत में डूब जाएगा
उसे बचाएगा कैसे तो चोट खाने से
ये दिल जो इशक़-ओ-मुहब्बत में डूब जाएगा
जो आफ़ताब था दुनिया की रोशनी के लिए
कहाँ ख़बर थी जहालत में डूब जाएगा
जहां में कोई भी अहल-ए-ख़िरद का लश्कर हो
वो बेहुनर की क़ियादत में डूब जाएगा
जो कर रहा है बुज़ुर्गों की हर जगह तज़हीक
वो शख़्स साद ज़लालत में डूब जाएगा
अरशद साद रुदौलवी