ग़ज़ल
^^^^^
मरहबा तेरा हुनर।।
जादूगर ओ जादूगर।।
ज़र्रे ज़र्रे में तूही।
सारी सृष्टि तेरा घर।।
मर्ग-ए-मायूसी बढ़ी।
सो रहे क्या चारागर।।
पत्थरों की कैद में।
काशी काबा गिरजाघर।।
साथ जलता कौन है।
काठ ऐ तेरा शुकर।।
इल्म को आलिम, यहाँ।
खा गई किसकी नज़र।।
दिल में जिसके अल्फ़ हो।
अब्द होता वो बशर।।
पारदारी हो पिता।
इब्न जीते हारकर।।
‘सुर’ तेरी आगोश में।
रहबरा ओ राहबर।।
।। धन्यवाद ‘सुर।।