पानी पर तस्वीर बनाने निकले हैं,
तिनकों से तक़दीर बनाने निकले हैं।
प्रेम पाश में बांध सके जो सबको ही,
ऐसी इक जंजीर बनाने निकले हैं।
फिर आएंगे राम एक दिन दुनियां में,
रघुकुल वाली खीर बनाने निकले हैं।
बल उसका आधा कर दे जो खड़े खड़े,
बाली जैसा वीर बनाने निकले हैं,
लक्ष्य भेद में रहे हमेशा ही आगे,
गांडीव तरकश तीर बनाने निकले हैं।
लाज बचाए वक़्त पड़े पर जो सबकी,
कान्हा की वो चीर बनाने निकले हैं।
जहाँ बसें दल बल से लक्ष्मी नारायण,
ऐसा सागर क्षीर बनाने निकले हैं।
धरती के हर घर पर जाकर पीर हरे,
ऐसा बादल नीर बनाने निकले हैं।
‘साहिब’ की सेवा का मन में भाव लिए,
तुलसी ग़ालिब मीर बनाने निकले हैं।।
—–मिलन साहिब।