सांस के लश्कर से जारी ज़िंदगी की जंग है
ये हमारी आपकी क्या हर किसी की जंग है
हो चुकी जब सल्ब-बीनाई हमारे ज़हन की
किस लिए फिर तीरगी और रोशनी की जंग है
है मयस्सर हर किसी को चार दिन की ज़िंदगी
किस लिए फिर आदमी से आदमी की जंग है
किस तरह गुज़रेगी तन्हा रात मेरी क्या ख़बर
आज फिर बेचैनियों से बे-कली की जंग है
सब्र का दामन हैं थामे हम ग़ुलामान-ए-हुसैन(रज़ी)
प्यासे होंटों से हमारे तिश्नगी की जंग है
जिसको देखो है परेशां आप अपनी ज़ात से
लड़ रहा हर शख़्स ही अब बेबसी की जंग है
साद ख़ुश रहना जहां में कितना मुश्किल हो गया
आज हर इक ग़म से हर-सू क्यों ख़ुशी की जंग है
अरशद साद रूदौलवी