++ग़ज़ल++(२१२२ २१२२ २१२२ २१२ ) दौलतें विश्वास की जब जब दिलों से घट गईं ज़र ज़मीँ के साथ रिश्तों में ख़राशें बट गईं ** कौन रखेगा मरासिम उनसे अब ता-ज़िंदगी प्यार वाली डोरियाँ जब बीच में से कट गईं ** जुर्म देखेगीं सहेंगी भी मगर बोलें न कुछ ऐसी क़ौमें मिट गईं तारीख़ से भी […]
एक गीत प्रीत का =========== “मुहब्बत की नहीं मुझसे ” , प्रिये ! तुम झूठ मत बोलो | ** लता के सम लिपट जाना , नखों से पीठ खुजलाना | अधर से चूम लेना मुख,नयन से कुछ कहा जाना | कभी पहना दिया हमदम,गले में हार बाहों का अचानक गोद में लेकर,तुम्हारा केश सहलाना | […]
++ग़ज़ल++(2122 2122 2122 212 ) आज फिर से उस रुख-ए-पुरनूर का आया ख़याल और उसकी दीदा-ए-मख्मूर का आया ख़याल *** झाँक कर माज़ी में जितनी बार देखा ग़ौर से उस शबाब-ओ-हुस्न में मगरूर का आया ख़याल *** दो घड़ी में ख़्वाब जब आँखों से ओझल हो गए तब मुझे अपने दिल-ए-रंजूर का आया ख़याल *** […]
बहुत अच्छा है कि खूबियाँ साथ ले के चलो मज़ा तो तब है कि खामियाँ भी साथ ले के चलो कामयाबी की तफ़्तीश पूरी नहीं हो सकती हो सके तो नाक़ामियाँ भी साथ ले के चलो नामदार होने का लुत्फ भी तभी है मियाँ जब कुछ बदनामियाँ भी साथ ले के चलो बेकार हैं जब […]
++ग़ज़ल ++(२२१ २१२१ १२२१ २१२ ) ग़म को क़रीब से कभी देखा है इसलिए लगता है दर्द ग़ैर का अपना है इसलिए ** जब और कोई राह न सूझे ग़रीब को रस्ता हुज़ूर ज़ुर्म का चुनता है इसलिए ** झूठों का कुछ बिगाड़ न सकते हुज़ूर आप पड़ती है मार पर उसे सच्चा है इसलिए […]
++ग़ज़ल ++(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ ) सुकून-ओ-अम्न पर कसनी ज़िमाम अच्छी नहीं हरगिज़ अगर पैहम है तकलीफ़-ए-अवाम अच्छी नहीं हरगिज़ ** निज़ामत देखती रहती वतन में क़त्ल-ओ-गारत क्यों नज़रअंदाज़ की खू-ए-निज़ाम अच्छी नहीं हरगिज़ ** न रोके तिफ़्ल की परवाज़ कोई भी ज़माने में कभी सपने के घोड़े पर लगाम अच्छी नहीं हरगिज़ ** किसी […]
++ग़ज़ल ++(१२१२ ११२२ ११२२ २२/११२ ) बशर पे रब जो कभी मेहरबान होता है दिलों में प्यार का जज़्बा जवान होता है ** छुपा है भेड़िया इंसान में पता किसको किसी के रुख़ पे न कोई निशान होता है ** कली चमन में है महफ़ूज़ क्यों नहीं अब तक सवाल सुन के दुखी बाग़बान होता […]
++ग़ज़ल++(१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ ) पसीने को बहाने से सदा क़िस्मत सँवरती है चमक सोने की तपने से ज़ियादा ज्यों निखरती है ** जुनून-ओ जोश से लबरेज मंज़िल पर रखे नज़रें उसी के घर में आ कर कामयाबी पानी भरती है ** दिये सबके बुझाती है महल हो या मकाँ-ए-फ़क़्र अमीरी या ग़रीबी में हवा […]
++ग़ज़ल++(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ ) रंज-ओ-ग़म हो न अगर आँखें कभी रोती क्या ? बेसबब साहिल-ए-मिज़गाँ पे नमी होती क्या ? ** ज़ख़्म ख़ुद साफ़ करें और लगाएं मरहम ज़ख़्म क़ुदरत किसी के ज़िंदगी में धोती क्या ? ** चन्द लोगों के नसीबों में लिखे ग़म ही ग़म ज़ीस्त सबकी ग़मों का बोझ कभी ढोती […]
°°° दिल की हर धड़कन तेरे नाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ? मेरी हर साँस तेरा ग़ुलाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ? •• तुझसे अलग कभी भी अपने-आपको माना ही नहीं , तेरे बिना कहाँ सुबहो-शाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ? •• ज़िंदगी में तू शामिल नहीं तो मतलब नहीं ज़िंदगी का […]
°°° दिल में सनम कुछ अच्छी बात है , क्या कह दूँ तुम्हें ? कुछ दिलक़श अनकही जज्बात है , क्या कह दूँ तुम्हें ? •• मेरी प्रीत का तेरी गली है आना-जाना , मेरे इश्क़ की शुरुआत है , क्या कह दूँ तुम्हें ? •• कभी मिलने की कसक , कभी ज़ुदा होने का […]
°°° बेहद याद आता है अक्सर मुस्कुराना तेरा । जाने क्यूँ सताता है अक्सर मुस्कुराना तेरा ? •• ग़मों के अलावा इस ज़हान में कहीं खुशी भी है , हरदम ये बताता है अक्सर मुस्कुराना तेरा । •• तू अगर हँसे तो लगता मानो फूल झर रहे हों , इक सक़ून दिलाता है अक्सर मुस्कुराना […]
भूख लगे तो रोटी की जात नहीं पूछा करते पेट को लगेगी बुरी,ये बात नहीं पूछा करते 1 ये धरती बिछौना ,ये आसमाँ है शामिआना बेघरों से बारहाँ दिन -रात नहीं पूछा करते 2 मालूम है कि एक भी पूरी नहीं हो पाएगी बेटियों से उनके जज्बात नहीं पूछा करते 3 क्यों बना है बेकसी […]
मिसरा-आप की नजदिकियां क्यूँ दुश्मनों से आजकल। आफताबी जलती नज़र,करे रोज़ ही ख़ाक़ मुझे, आप की नजदिकियां क्यूँ हैं,दुश्मनों से आजकल। धोखा देने की सुनो, फितरत तो न थी आपकी, कौन है जिसकी हिदायत,पल रही है आजकल। पास आने से तेरे,ले महकने लगा फिर बागबान बातें तेरी मिश्री बनकर,घुल रही हैं आजकल। लब से निकलकर […]
ए जिंदगी क्या कहूँ तुझे, महज़ बिसात-ए-शतरंज है तू। बिछा देता बिसात पर ख़ुदा, बनाकर शतरंज का हमें मोहरा। कोई हाथी -घोड़ा, कोई चला बन ऊँट टेढ़ा। निज की लगा रहे हैं हम बाज़ी चले जा रहे हैं नित नयी चालें, ताकि अपने अहम रूपी बादशाह को बचालें। मोहरे अक्सर चलते हैं कूटनीति की चाल, […]
पुष्प खिलकर के उर में, इक संसार बसाती है संस्कार मय संस्कृती का, हमको सार बताती है धरती पर रहती हर माता ईश्वर तुल्य जगत में है वीरानी सी दीवारो को ये ही घर- बार बनाती है ऋषभ तोमर
मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे में जाने से क्या होता है क्योकि माँ से बढ़के जग में कोई दर्श नही होता मंजिल मिल न पाती है उपवन वीराने हो जाते जब तक माँ के हाथों का सिर पर स्पर्श नही होता चोट लगे गर मुझको कही तो दर्द उसे हो जाता है मेरे बिना उसे दुनियाँ में […]
पास होना ही तेरा बहुत खास है मैं कहूँ क्या प्रिये तू मेरी स्वास है जिश्म ही रह गया ये मेरे संग है रूह प्रियवर मेरी तो तेरे पास है तुमसे मिलने की मन में मुरादे लिये हर समय जान तेरा ही अहसास है जब भी आती तसव्वुर में मेरे सनम बढ़ती जाती ह्रदय में […]
चोट लगे गर मुझको कही तो दर्द उसे हो जाता है मेरे बिना उसे दुनियाँ में कुछ न इक पल भाता है पूरा दिन लल्ला लल्ला कह मुझपे प्यार लुटाती है तब कहता हूँ माँ से प्यारा कोई न जग में नाता है फूल तुम्हे भेजा है खत में कई तर्ज पर मुक्तक
मैं अपने कामों में ईमान रखता हूँ सो सबसे अलग पहचान रखता हूँ सब इंसान लगते हैं मुझे एक जैसे तासीर में हमेशा भगवान् रखता हूँ है महफूज़ जहाँ मुझ जैसे बन्दों से सच से लैश अपनी जुबां रखता हूँ बना रहे हिन्दोस्तान मेरा शहंशाह अपने तिरंगे में ही प्राण रखता हूँ मुझे तालीम है […]