तन ख़रीदा मन ख़रीदा भूख ने बचपन ख़रीदा बेबसी की इन्तेहा से माँ ने पागलपन ख़रीदा भरत दीप
Category Archives: क्षणिकाएँ
एक खालीपन है भीतर मेरे मन में……… भरने की कोशिश में लगी रहती हूं …….. कभी कविताओ से……. कभी कहानियों से……… कभी गीतो से………; कभी झूठ से………. कभी सच से………. कभी चुप्पी से………. और कभी तुम्हारी यादो से…. तेरे झूठे वादो से………
प्रकृति सौंदर्य सुबह का अलसाया हरियाली युक्त निखार लाता यौवन मधुशित तेरा चेहरा अर्द्धनिद्रा, नशीली आंखे अन्दर स्फुर्ति चेहरे पर आनन्द विभोर अलसाया सा तन कुंभलित केश ऐसी है प्रकृति ऐसा है इसका भेष। -ः0ः- नवलपाल प्रभाकर “दिनकर”
यादों के बादल से । नीर बहे सागर से । कुछ गहरे गहरे से । कुछ राज उज़ागर से । …. विवेक दुबे”निश्चल”@….
१ कागज़ जब मुझे रजिस्टर में से कागज़ फाड़ना होता है मैं हाशिये को मोड़कर फाड़ लेता हूँ वरना उससे जुड़ा बहुत आगे का पन्ना भी फट जाता है भविष्य है क्यूँ फाडू अपने ही हाथों २ बीच की दराज़ यह हमेशा फंसी रहती है ऊपर वाली और नीचे वाली को तीन चार बार खोलना […]
ख़ुशी के लम्हे पंख लगाकर देखो उड़ ही जाते हैं, गम के लम्हे समय से पहले दौड़ कर ही आते हैं,, मंजिल गर होती है गुम रस्ते भटक ही जाते हैं,, जीवन एक मृतक बन हम जीते ही जाते हैं,,, लहद में हो आशियाना ख़्वाब ये सजाते हैं,, ख़ुशी के पंछी जाने क्यों लौट कर […]
जागते तुम भी रहे जागते हम भी रहे दूर थे नही मगर , फाँसले कम न रहे । …. विवेक दुबे”निश्चल”@…