ज़ुबां खामोश नीलम,💖धड़कन बात कहती है। अदा भरकर निगाहों में, नज़र जज़्बात कहती है। सुनो, डूबी मेरी चाहत, तेरी मुहब्बत के समंदर में, किनारा सामने लेकिन,नैया बीच मझधार बहती है। नीलम शर्मा ✍️
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जीतने का भरम नहीं रखते हौसला हम भी कम नहीं रखते मंज़िलें ख़ुद ही पास आती हैं दौड़कर हम क़दम नहीं रखते #डॉ आनन्द किशोर
मुख़्तसर से असबाब ए हयात लिए घूमता हूँ मैं लबों पर रोज़ हज़ारों सवाल लिए घूमता हूँ न जाने कब बख़्श दे वो परवर दिगार मुझको मैं सदा साथ रहम की फरियाद लिए घूमता हूँ
नाबीना होने का नाटक करते हैं सहते हैं सौ ज़ुल्म मगर चुप रहते है दुनिया ऐसे ही लोगों की मजलिस है हम जैसे कुछ लोग ख़सारा सहते हैं भरत दीप नाबीना=दृष्टि हीन मजलिस =सभा ख़सारा= नुकसान
तजुर्बे जोड़ न पाया कभी भी अपने जीवन में अपने बडो का लिये साथ कव कोरा बना रहता. बहुतो शेरों से भरे कागज भी सभाले थे हमने खफा इस बात पे हूँ रेखा ज़ाना रुतबा बना रहता. रेखा मोहन ४ /६ /२०१८
धूल थी चेहरे पे उसके दिल मगर शफ्फाक़ था हमने पहचाना नहीं पर आदमी वो ख़ास था मलगुजा सा पैराहन था सलवटें थीं हर तरफ खेत से लौटा था शायद पुरसुकून अंदाज़ था भरत दीप
निगाहें अक्सर मचल जाती है, जब तेरी नजरों से मिल जाती हैं। निगाहें बेसब्र हो जाती हैं, जब वो जुल्फें चेहरे से हटाती हैं। निगाहें गैर हो जाती हैं, जब उनकी आंखों से टकराती हैं। निगाहें कातिल बन जाती हैं, जब वो दिल में उतर जाती हैं।।
क्या हुआ आज ये बेकली किसलिए , मेरी दुश्मन बनी सादगी किसलिए , लत लगी तेरी यादों की कैसे मुझे – मैं भी करने लगी बंदगी किसलिए ..मधु
माँ से करने लगे क्यूँ आतताई दोस्तों हरियाली दुष्शासनों से खिंचवाई दोस्तों अस्तित्व खुद ही का खतरे में जब अभी अस्मत माँ की बचानी याद आई दोस्तों।। शुचि(भवि)
डूब गए खुशी से तो किनारे की तलाश किया नहीं करते इश्क़ में रज़ा हमारी थी ग़म औ खुशी का गिला नहीं करते तड़पेंगे एक दिन सितमगर देखकर हौसला बुलंद मेरा मक़सद बदलते रहते हैं मगर एहसास कभी मिटा नहीं करते शिवानी ,जयपुर
ज़िंदा रहा तो देखा नहीं , मुड़कर कभी मुझे । आज मर गया तो चर्चे , अब सरेआम हो गये ॥ जो कहते थे कभी हराम है, मैं पीता मिलूं अगर । मौकापरस्त हम प्याले, वो एक जाम हो गये ॥ – कवि योगेंद्र तिवारी
अपने अन्दर हैं समेटे जो तबाही मन्जर हम को हैं आज वही देते दिखाई मन्जर हर तरफ खून से मासूम के लिपटी लाशें देख कर दिल बहुत देता है दुहाई मन्जर अरशद साद रूदौलवी
आपके सामने है कागज दिल आओ इस पर फ़क़त वफा लिख दो कर रहा इंतिज़ार कागज दिल अपनी धड़कन की बस सदा लिख दो साद रुदौलवी
शुक्रे-ख़ुदा अदा किया मैंने बुझा के प्यास कुछ लोग देखते रहे छोटा-बड़ा गिलास पानी की गर हो बात तो ज़मज़म को छोड़कर पाकीज़गी में कौन है गंगा के आसपास शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
कैसे भला कह दूँ हसरत दबाता नहीं है वो जो जजबात हैं दिल मे ,,बताता नहीं है वो क़यामत है ,जानलेवा हर अंदाज है उसका चाहत है बहोत गहरी ,पर जताता नहीं है वो #Anil