°°° दिल की हर धड़कन तेरे नाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ? मेरी हर साँस तेरा ग़ुलाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ? •• तुझसे अलग कभी भी अपने-आपको माना ही नहीं , तेरे बिना कहाँ सुबहो-शाम , फिर कैसे बेवफ़ा मैं ? •• ज़िंदगी में तू शामिल नहीं तो मतलब नहीं ज़िंदगी का […]
Category Archives: ग़ज़ल (दर्द)
ग़ज़ल आह…तिरा प्यार तो सितमगर है बहुत। आह…तिरा प्यार तो सितमगर है बहुत। शायद इस सरकार का असर है बहुत। वादे बेबुनियाद तेरे हिलने लगे हैं अब, किस पल पलट जाए ये डर है बहुत। इस दिल की व्यथा को तुम क्या जानो, हाँ अक्सर आप यहाँ बेखबर है बहुत। हम बेहालात पर वैसे भी […]
वक्त से भी वो लड़ी दिखती है एक कोने में खड़ी दिखती है हो चुकी है वो इतनी दुबली अब कोई पतली सी छड़ी दिखती है फिक्र की हैं लकीरें अब माथे पर दिल में बेचैन बडी दिखती है टाट की हैं दीवारें बिन छप्पर कैसी मुश्किल की घड़ी दिखती है शहर तूफ़ान की ज़द […]
°°° बेरंग ज़िंदगी को रंगने का , कुछ क़सक़ ऐसा भी । रिश्तों के दरम्यां गुज़रने का , कुछ क़सक़ ऐसा भी । •• सुबह से लेकर शाम तक मानो एक जैसा मंज़र , ख़्वाहिश से किस तरह उबरने का , कुछ क़सक़ ऐसा भी । •• इक तलाश रही कि जी को कुछ सक़ून […]
ग़ज़ल .नगमा ए दिल मेरी बर्बादी का जश्न मना के लौट रहे हो। अच्छा है कुछ प्यार जता के लौट रहे हो। फक्र है तेरी बेवफा ए मोहब्बत पर, अपनी मोहब्बत दफना के लौट रहे हो। जरा सुन किसी और से न खेलना इस तरह, जिस में मुझे तुम मिटा के लौट रहे हो। ये […]
ग़ज़ल रुठकर हमसे यूँ, सताने की सोच रहे हो। दूर होकर भी, तड़फाने की सोच रहे हो। वैसे भी कुछ नहीं रखा जा मोहब्बत में, अक्सर कि तुम,भूलाने की सोच रहे हो। फरेब है,धोखा है सब में है ये छलावा, बाखूब जानता हूँ,मिटाने की सोच रहे हो। हम डूब गए वैसे भी आँसुओं के सागर […]
°°° बात बस ये जाना , मेरे पास कुछ सामान उसका था । रहे कोई कैसे मेरे दिल में , ये मकान उसका था । •• पता है उसे तन्हाई से मुझे बेहद डर लगता है , तन्हा छोड़ जाये या फिर नहीं , बस ईमान उसका था । •• इश्क़ का बँटवारा रजामंदी से […]
करें भी चोट का किससे यहाँ गिला कोई| दियारे ग़ैर में अपना नहीं मिला कोई| (दियारे ग़ैर–दूसरे देश, परदेश|) ++ मियाने राह में बैठा बहुत जला कोई| मगर तपिस में न पत्थर वहाँ गला कोई| (मियाने राह- रास्ते के बीच) ++ ख़याले ख़ाम की बातें सुना गया जालिम, भरी थी बज्म न अपनी जगह हिला […]
अब जैसा ज़माना है ये ऐसा भी नहीं था इन्सान को इन्सान से ख़तरा भी नहीं था उस दर्द में भी मैंने गुज़ारे हैं शब-ओ-रोज़ जो दर्द मिरी ज़ात का हिस्सा भी नहीं था जिस ख्वाब की ताबीर बताई गई मुझको वो ख़ाब तो मैंने कभी देखा भी नहीं था क्यों आँख से पलकों पे […]
वो ख़ाब कोई आँखों में पलने नही देते।। गुलशन में नये गुल कभी खिलने नही देते।। दस्तक़ किसी की दिल में सुनाई नही देती।। हम ख़ाब सुनहरे यूं ही पलने नही देते।। यूं गेसुओँ में उलझी हुई हैं नज़र उनकी।। हम चाल उनकी कोई भी चलने नही देते।। वैसे तो कई रतजगे हमने भी किये […]
गजल तुम्हें और क्या ये सुनाऊँ मैं, मुझे आफतों से यही मिला| मेरा एक दिन का न दर्द ये, मुझे मुद्दतों से यही मिला| ++ मेरे रुख पे था किसी चांद की, वो तो चाँदनी का गुबार था| हूँ बुझा बुझा जो मैं खाक सा, मुझे जुल्मतों से यही मिला| ++ वो मिला नहीं तो […]
‘सितम नाज़ तो देखो’ आँखों से हया टपके है अंदाज़ तो देखो। नाज़ुक से मेरे दिल पे सितम नाज़ तो देखो। चाहत ने उसी की हमें दीवाना बनाया, अंजाम खुदा जाने है आगाज़ तो देखो। क्या जोशे-मुहब्बत का तुम्हें हाल बतायें, टूटा जो मेर दिल का वो साज तो दखो। तहरीर दिलो-जां पे ये तुमने […]
चाँद तारे भी देखके तुमको हैरान सा है।। रुख़ क्यों आसमाँ का ही ये बेज़ान सा है।। मेरी भी ज़िन्दगी गुज़री परेशानी में ही।। बादलों के मध्य सूरज भी हैरान सा है।। ये सुई और धागे में ही तो मोहब्बत है।। दिल दुखाके भी वो मेरा नादान सा है।। इस हवा में तो साँसे लेना […]
ज़िंदगी को भी तो हमसे यूं गिला हो जैसे दर्द उसको भी मुहब्बत में मिला हो जैसे।। देख ले मेरा भी कोई मुक़द्दर यहाँ पे यार के प्यार की अब कोई दुआ हो जैसे।। मर गया वो पतंगा भी तो इश्क़ में ही अब मुहब्बत से ही होती हैं नफ़ा हो जैसे।। भूख़ी आत्मा को […]
गजल आईने सी टूटी हुई तस्वीर बन गया हूँ! रूठे हुए भाग्य की लकीर बन गया हूँ! अब कहाँ बसेरा इस बेबस इंसान को, दो गज की मिली जागीर बन गया हूँ! कैसे लगे निशाना अब अपने लक्ष्य पर, टुकड़े हुए कमान का तीर बन गया हूँ! बढ़ नहीं सकता दो कदम आश लिए , […]
गजल छलकने वाले जाम का मयख़ाना कहां रहा! आजकल दिलजलों का ये ठिकाना कहां रहा! वो बैच गए पैसों पर अपने आप को यारो, मेरे दिल का वहां अब आशियाना कहां रहा! क्या चाहत है फ़रेबी चेहरे पर देखने को मिली, रिश्तों की अहमियत का जमाना कहाँ रहा! टूटा हुआ आईना पूछ रहा है मुझसे […]
तुझसे बिछड़ कर ये बात समझ में आई सुबहों-शाम और दिन-रात समझ में आई जिस्म जब थक के सोया था बिस्तर में हँसी-मज़ाक व मीठी बात समझ में आई मैं ढूँढता ही रहा तुझे हर शय,हर मंज़र में तेरी-मेरी पहली मुलाकात समझ में आई दरो-दीवार भी तेरा इंतज़ार करते रहते हैं बुज़ुबान चीजों की बात समझ […]
लौट आया हूँ मैं चोट खा करके अब| फाइदा कुछ नहीं दिल लगा करके अब| ++ रास्ता रोकता है बुलन्दी का जो, फैंकना है वो पत्थर उठा करके अब| ++ दोस्ती की जरा भी न की कद्र पर, खुश है वो दुश्मनी ये निभा करके अब| ++ मुझको तकलीफ बस एक ही बात की, वो […]
जबसे उनके ख्वाबों में अपनी नींदें बाँटी करवटें बदल कर हमने तमाम रात काटी बेचैन सिलबटों में जब उनकी याद जागी तस्वीर उनकी सिरहाने रखके रात काटी चाँद पूरे शाबाब पे जब आसमान में आया उसमें तेरा अक्स देखकर तन्हा रात काटी बादल उमड़-घुमड़ कर मुझे सताता रहा तेरी वस्ल में भीग कर हरजाई रात […]
तुम मरज की मिरे दवा कर दो या मिरा ज़ख़म और हरा कर दो मैं तो पत्थर हूँ राह का मुझको यूं तराशो कि देवता कर दो चोट देकर पुराने ज़ख़मों को दिल के हर दर्द को नया कर दो याद पहुंचे ना मेरे सीने तक दरमियाँ उतना फ़ासिला कर दो बद-गुमानी की धूल है […]