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ग़ज़ल (दर्द)
ग़ज़ल ————— यादों ने क्या ज़ुल्म किए दिल जानता है कैसे हम कल रात जिये [...]
—– ग़ज़ल———– मेरी तन्हाई मेरा जुनूं और मैं ए शबे हिज्र कितना चलूं और मैं [...]
शेर (दर्द)
अपना दामन समेट मत लेना आंसुओं का अदब ज़रूरी है राज़िक़ अंसारी
देशभक्ति - वतनपरस्ती
हमारा ख़ून जब मांगेगी धरती दिखेंगे आपको हम सब से आगे हमारे जिस्म में सांसे [...]
शेर (अन्य)
एक मतला जो आग लगाने मेरी जागीर में आए हैरत है मुझे आप भी तस्वीर [...]
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