ग़ज़ल (अन्य)
जिगर का ज़ख़्म कुछ गहरा नहीं है न जाने क्यों मगर भरता नहीं है अंधेरे [...]
मुक्तक (संदेशात्मक)
मुल्क के वास्ते सर अपना कटा कर देखो शम्मा की मिस्ल कभी खुद को जला [...]
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