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ग़ज़ल (दर्द)
करें भी चोट का किससे यहाँ गिला कोई| दियारे ग़ैर में अपना नहीं मिला कोई| [...]
ग़ज़ल (संदेशात्मक)
दिल की ही सुनी होगी दिल से ही कही होगी| वो आँख न वैचारी बे [...]
गजल तुम्हें और क्या ये सुनाऊँ मैं, मुझे आफतों से यही मिला| मेरा एक दिन [...]
लौट आया हूँ मैं चोट खा करके अब| फाइदा कुछ नहीं दिल लगा करके अब| [...]
ग़ज़ल (अन्य)
इन तंग लिबासों को जो देख लजाया हूँ| गुमनाम सी बस्ती से मैं शहर में [...]
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