ग़ज़ल (दर्द)
रहमतें भी नहीं सदा भी नहीं हमने चाहा था जो मिला भी नहीं अय बशर [...]
इस ज़ीस्त की असास थी जाने कहाँ गयी आँखो में जो ये प्यास थी जाने [...]
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