देशभक्ति - वतनपरस्ती
मैं धीर प्रकृति का पर्वत सा तुम टुकड़ो जैसे इतराते हो मैं गहरा सा [...]
कविता (वेदना)
#ख्वाब……तुझे समझाएं क्या ________ चले इस कदर साथ कि चल ही न सके लाख पाला [...]
कविता (संदेशात्मक)
जब सूरज के उगने की बंदिश न होगी चाँद के अस्त होने से रंजिश न [...]
तुम परिंदे आसमाँ के मै नारी हूँ धरती की … तुम बादशाह खुशियों के मै [...]
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