ग़ज़ल (संदेशात्मक)
मुझसे मिल कर हो जाते हैं ख़ामोश अक्सर शीरीं मिजाज़ मेरा लोगों को खलता बहुत [...]
ग़ज़ल (अन्य)
ए चांद सिखा मुझको जाना अधूरे से मुकम्मल हो जाना घने अंधेरों में रह कर [...]
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